आशुतोष अग्निहोत्री की सफलता की कहानी एक ऐसी मिसाल है, जिसमें मेहनत, आत्मविश्वास और सही समय पर सही कदम उठाने की सीख मिलती है। यूपीएससी जैसी प्रतिष्ठित परीक्षा में 1999 में आई एक गलती ने न सिर्फ उनके करियर को नया मोड़ दिया, बल्कि इतिहास में भी अपनी छाप छोड़ दी। आशुतोष एक मध्यमवर्गीय परिवार से आते हैं और उनका शुरुआती सफर भी किसी आम छात्र की तरह रहा, लेकिन उनके संघर्ष और उनकी सूझबूझ ने उन्हें सबसे अलग बना दिया।
कानपुर निवासी आशुतोष ने अपनी पढ़ाई के दौरान ही ठान लिया था कि उन्हें प्रशासनिक सेवा में जाना है। उन्होंने फिजिक्स में बीएससी और तत्पश्चात अंग्रेजी साहित्य में एमए किया। जब 1999 में यूपीएससी (संघ लोक सेवा आयोग) ने सिविल सर्विसेज की परीक्षा का रिजल्ट घोषित किया, तो उनको 277वीं रैंक मिली थी। यह रैंक उस वर्ष आईएएस के लिए काफी पीछे मानी जाती थी और उन्हें इंडियन डिफेंस अकाउंट सर्विस में नियुक्ति मिलने वाली थी।
UPSC Success Story
आशुतोष अग्निहोत्री की सफलता किसी एक प्रयास या एक परीक्षा का नतीजा नहीं थी। इससे पहले भी वे मेंस में पहुंचे थे लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी थी। 1999 में, जब रिजल्ट आया और अंकसूची उनके घर पहुंची, तो उन्होंने पाया कि ‘सेकंड ऑप्शनल’ पेपर में उनके नंबर बहुत कम हैं—सिर्फ 70 अंक। जबकि पिछले अनुभव और मेहनत को देखते हुए वे इतने कम अंक की उम्मीद नहीं कर रहे थे।
ये बात उनके मन में बैठ गई कि कुछ गलती जरूर हुई है। इसी विश्वास के साथ उन्होंने यूपीएससी को एक साधारण चिट्ठी लिखी और अपनी आपत्ति दर्ज कराई—उन्होंने नंबर की पुनःजांच की मांग की। आज के समय में बहुत कम लोग ऐसे हिम्मत दिखा पाते हैं कि किसी बड़ी संस्था की चूक पर आवाज उठाएं।
चिट्ठी भेजने के बाद करीब एक माह बीतने पर मीडिया में खबर आई कि यूपीएससी के रिजल्ट में कोई गड़बड़ हुई है। बाद में यह स्पष्ट हुआ कि क्लर्क की गलती से उनके नंबर (176) किसी और के नाम जुड़ गए थे और किसी और के 70 अंक उनके नाम पर लगा दिए गए थे। जब जाँच हुई और गलती सुधारी गई, तब उनका कुल स्कोर 1261 हो गया और रैंक 26वीं आ गई। यह बदलाव होते ही उनकी किस्मत भी बदल गई और उन्हें आईएएस कैडर यानी Indian Administrative Service में शामिल होने का मौका मिला।
इस बदलाव का असर उनके बैचमेट्स पर भी पड़ा; मसूरी के फाउंडेशन कोर्स की तारीख भी दो हफ्ते आगे बढ़ गई थी। इस तरह UPSC के इतिहास में पहली बार अंतिम घोषित परिणाम में इतना बड़ा बदलाव हुआ।
यूपीएससी द्वारा गलती सुधारे जाने की मिसाल
यूपीएससी हमेशा पारदर्शिता और निष्पक्षता के लिए जाना जाता है, पर इस घटना ने यह दिखा दिया कि अगर अभ्यर्थी अपने हक के लिए आवाज उठाए तो संस्थाएं भी सकारात्मक तरीके से निर्णय ले सकती हैं। उस वक्त यूपीएससी के चेयरमैन लेफ्टिनेंट जनरल सुरेंद्र नाथ ने व्यक्तिगत रूप से इस शिकायत को गंभीरता से लिया और जांच के बाद गलती स्वीकारकर उसे सुधारा। इससे यह सीख मिलती है कि संस्थागत पारदर्शिता भविष्य गढ़ने में कितनी अहम है।
यह घटना अन्य अभ्यर्थियों के लिए भी एक प्रेरणा बनी कि वे भी अपने अधिकार और सच्चाई के लिए डटकर खड़े रहें। ऐसा पहली और अब तक आखिरी बार हुआ जब यूपीएससी को अंतिम परिणाम बदलना पड़ा और एक युवा का भविष्य इसी फैसले से संवर गया।
आशुतोष अग्निहोत्री का करियर और उपलब्धियां
26वीं रैंक आने के बाद आशुतोष अग्निहोत्री को असम-मेघालय कैडर में आईएएस अधिकारी के रूप में तैनात किया गया। उन्होंने विभिन्न जिलों में डिप्टी कमिश्नर और डीएम, असम सरकार में कई अहम पदों पर कार्य किया। बाद में केंद्र सरकार के मंत्रालय में भी सेवाएं दीं।
2025 में उन्हें भारतीय खाद्य निगम (FCI) के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर के रूप में नियुक्त किया गया। वे साथ ही केंद्रीय भंडारण निगम (CWC) के चेयरमैन भी हैं। उनकी उपलब्धियाँ सिर्फ प्रशासनिक क्षेत्र तक सीमित नहीं रहीं, वे एक कवि और लेखक भी हैं और कई किताबें लिख चुके हैं।
कौन सी योजना या गवर्नमेंट स्कीम से जुड़ी है ये कहानी?
यह सफलता कहानी किसी सरकारी योजना से नहीं बल्कि भारत की सबसे बड़ी और कठिन सिविल सेवा परीक्षा—यूपीएससी (UPSC CSE)—से जुड़ी है। यूपीएससी का मुख्य उद्देश्य सरकार के प्रशासनिक, पुलिस, विदेश सेवा, अकाउंट और अन्य क्षेत्रों के लिए अधिकारियों की निष्पक्ष और योग्य नियुक्ति करना है।
यूपीएससी परीक्षा के तहत हर वर्ष लाखों युवा आवेदन करते हैं, किंतु सफलता कुछ ही लोगों को मिलती है। इसके चयन में पारदर्शिता, निष्पक्षता और सच्चाई की मिसाल आशुतोष की कहानी है, क्योंकि यहां क्लर्क की एक गलती से उनका भविष्य बदलने वाला था, लेकिन यूपीएससी ने खुद अपनी गलती मानी और सुधार की, जिससे योग्य व्यक्ति को उसका हक मिला।
निष्कर्ष
आशुतोष अग्निहोत्री की कहानी यह सिखाती है कि आत्मविश्वास, ईमानदारी और मेहनत कभी मत छोड़िए। आज वे शीर्ष आईएएस अधिकारी और एक प्रेरक लेखक भी हैं, उनकी जिंदगी हर युवा के लिए लक्ष्य-इस्पायरिंग है। उनका सफर बताता है कि अगर सही सोच और हिम्मत से अपने अधिकार के लिए आगे बढ़ा जाए, तो किसी भी मिसाल का हिस्सा बना जा सकता है।